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दिल की सुनो ..


मै आसमा की बलंदी पर बाराह पहुंचा

मगर नसीब जमी पर उतारलेता है

अमीरे शहर की मुहब्बत से बच के रहो

ये सर से बोझ नही सर उतार लेता है

उसी को मिलता है एजाज भी जमाने में

बहन के सर से जो चादर उतार लेता है

उठा है हाथ तो फिर वार भी जरुरी है

की सांप आँखों में मंजर उतार लेता है

कुंवर समीर शाही

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा