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एक बिंदास कवि..

एक बिंदास कवि ने बोला॥
कविता क्या निराली हो॥
मेरे हाथो से लिखी गयी हो॥
लेकिन मुझसे प्यारी हो॥
चुन चुन के शब्दों को ढूढा॥
एक अर्थ बनाया मैंने था॥
सब लोगो की जुबा पे तुम हो॥
पर मुस्कान हमारी हो॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा