नैहर जब से छूट गवा॥
तब से उपजी ब प्रीत ॥
सोच समझ के चाल चली॥
न दिखा होय विपरीत ॥
मान मर्यादा सब कय समझी॥
सब कय करी सम्मान॥
सूझ बूझ अब साथ है॥
करी नही अपमान॥
प्राताकाल म उठ जायी॥
घर कय करी सब काम॥
पति पूजा म लीनरही॥
बोली न अनाप सनाप॥
तब से उपजी ब प्रीत ॥
सोच समझ के चाल चली॥
न दिखा होय विपरीत ॥
मान मर्यादा सब कय समझी॥
सब कय करी सम्मान॥
सूझ बूझ अब साथ है॥
करी नही अपमान॥
प्राताकाल म उठ जायी॥
घर कय करी सब काम॥
पति पूजा म लीनरही॥
बोली न अनाप सनाप॥
आंख और हाथ का बस इतना फलसफा है।
ReplyDeleteसमझो तो ठीक वरना हर मौसम ख़फ़ा है।