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कविता सागर


कविता सागर

हम तुम्हारे नाम की दिन रात मालाये जपे

तुम हमेशा गैर को सजदा करो तो क्या करे!

हम जुनुने इश्क में तुमको समझते है खुदा

तुम सरे बाज़ार यू रुशवा करो तो क्या करे !

दे दिया तन ,मन तुम्हारे नाम लिख दी जिन्दगी

तुम दरो दिवार का सोदा करो तो क्या करे

जब दिया तुमने हमें पैगामे नफरत ही दिया !

अऊर उस पर प्यार का दावा करो तो क्या करे !

कुंवर समीर शाही

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ग़ज़ल

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