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ग़ज़ल--पानी चाँद पर

चाँद पर पानी ---डॉ श्याम गुप्त की ग़ज़ल-----

मर गया जब से मनुज की आँख का पानी |
हर कुए तालाब नद से चुक गया पानी |

उसने पानी को किया बरबाद कुछ ऐसे,
ढूँढता फ़िर रहगया हर राह पर पानी |

उसने पानी का नहीं पानी रखा कोई ,
हर सुबह और शाम अब वह ढूँढता पानी |

पानी-पानी होगया हर शख्स पानी के बिना,
खोजने फ़िर चलदिया वह चाँद पर पानी |

कुछ तसल्ली तो हुई,इक बूँद पानी मिलगया ,
पर न 'पानी मांग जाए' , चाँद का पानी |

श्याम' पानी की व्यथा समझे जो पानीदार हो ,
'पानी-पानी ' होरहा हर आँख का पानी ||



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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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