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श्रीराम चंद्र फ़िर आयेगे॥

दशकंधर का वध कराने॥
श्रीराम चंद्र फ़िर आयेगे॥
अत्याचारी रावन की लंका॥
बजरंगवली जलायेगे॥
अंहकार की बसी भावना॥
अत्याचारी के रग रग में है॥
पाप अधर्म होते है हरदम॥
वैमनुष्यता कण कण में है॥
बंधक बने सही मानव जो॥
उनको मुक्ति दिलाये गे॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा