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पम्मी तोर कंगना..

जब-जब अकडे भरी जवानी॥
बहे बयारिया अंगना में॥
संझ्लौका से नजर गडी बा॥
पम्मी वाले कंगना पे॥
बड़ी सुगन्धित बहुत सुरीली॥
मध्यम चलती चाल॥
मन कहता की उससे पूछू॥
कैसे तुम्हारी हाल॥
अकड़बाजी से बाज़ न आती॥
ऊब गए हम नखरा से॥
संझ्लौका से नजर गडी बा॥
पम्मी वाले कंगना पे॥
मन कहता की कैसे छेड़ू॥
उसके दिल तान॥
तोहरे विरह म ब्याकुल दिहिया॥
रस तपकावा अधरा से॥
संझ्लौका से नजर गडी बा॥
पम्मी वाले कंगना पे॥
कंगना पहन के तू चलबू तो॥
हँसे लागे ज़माना॥
हमारे तोहरे प्यार कय चर्चा से॥
होय जाए कुल हल्ला॥
तोहरी चिंता माँ देहिया टूटे॥
मजा नही बा लफडा में॥
संझ्लौका से नजर गडी बा॥
पम्मी वाले कंगना पे॥

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ग़ज़ल

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