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कर देना भैया माफ़...

लेखक के तन में बसा शब्दों का भण्डार॥
उठे लेखनी जब जबतब देता उपहार॥
तब देता उपहार शब्द को हार पिन्हाता॥
उसके लिखे कवित्र को जब का प्राणी गाता॥
शब्द सुरीले सजा कर रखता शब्दों का मेल॥
कभी कभी ले बिछड़ जाय तो होता बड़ा झमेल॥
होता नया झमेल जसवंत का पत्ता साफ़॥
लिखने में कोई त्रुटी हुयी हो कर देना ॥
भैया माफ़...

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा