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मुक्तक आचार्य संजीव 'सलिल'

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मुक्तक
आचार्य संजीव 'सलिल'
राष्ट्र जमीं का महज न टुकडा, यह आस्था-विश्वास हमारा.
तीर्थ, धर्म, मंदिर, मस्जिद, मठ, गिरजा, देवालय, गुरुद्वारा.
भाषा-भूषा-भेष भिन्न हैं, लेकिन ह्रदय भिन्न मत मानो-
कोटि-कोटि हम मात्र एक हैं, 'जय भारत माँ' सबका नारा.
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सत्ता और सियासत केवल साधन, साध्य न इनको मानो.
जनहित-राष्ट्रोत्थान एक ही लक्ष्य अटल अपना पहचानो. .
संसद और विधानसभा में वाग्वीर जो पहुँच गए हैं-
ठुकरा उनको, जन-सेवक चुन, जनगण की जय निश्चय जानो..
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देव, खुदा, रब, गौड, ईश्वर, गुरु, ऋषि भारत की संतान.
भारत जग में सबसे ज्यादा पावन, सबसे अधिक महान.
मंत्र, ऋचाएँ, श्लोक, आरती, आयत, प्रेयर औ' अरदास.
वन्दन-अर्चन करें राष्ट्र का, 'सलिल' सतत का र्गौरव गान.
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संसद मंदिर लोकतंत्र का, हुल्लड़ जनगण का उपहास.
चला गोलियां मानव-द्रोही फैलाते नृशंस संत्रास.
मूक रहे गर इन्हें न रोका, तो अपराधी हम होंगे-
'सलिल' सत्य यह, क्षमा न हमको देगा किंचित भी इतिहास.
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'बाजी लगा जान की, रोको आतंकी-हत्यारों को.
असफल हुआ सुरक्षा बल, क्यों मारा ना गद्दारों को?'
कहते जो नेता, सेना में निज बेटे पहले भेजें-
देश बचाते जान गँवाकर, नमन सिपहसालारों को..

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ग़ज़ल

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