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पता नही रूक ज़ाता हूँ...

करता कोशिश मेरा दिल जब॥
तेरे दिल से भिड़ने को॥
पता नही क्यो रूक ज़ाता है..
नैना तुमसे मिलने को॥
पथ पर तेरे चल कर आया॥
सात जनम तक रहने को॥
पता नही क्यो पर रूक ज़ाता है॥
संग संग तेरे चलने को...
व्याकुल होता बहुरंगी मन॥
पास तुम्हारे आने को॥
पता नही क्यो दिल नही कहता॥
तुमको राज़ बताने को॥
दिल तो धक् धक् कर जाता है॥
तेरे संग मचलाने को॥
पता नही क्यो रूक ज़ाता है॥
पास तुम्हारे आने को॥
रात को सपना बुन लेता हूँ॥
तुमसे प्रीत लगाने को॥
पता नही क्यो कह नही पाता॥
मन की बात बताने को॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा