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लो क सं घ र्ष !: यूं नियति नटी नर्तित हो....


यूं नियति नटी नर्तित हो,
श्रंखला तोड़ जाती है
सम्बन्धों की मृदु छाया ,
आभास करा जाती है

ईश्वरता और अमरता ,
कुछ माया की सुन्दरता
शिव सत्य स्वयं बन जाए,
जीवन की गुण ग्राहकता

जग में पलकों का खुलना,
फिर सपनो की परछाई
आसक्त-व्यथा का क्रंदन,
कहता जीवन पहुनाई

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा