Skip to main content

लो क सं घ र्ष !: इर्ष्या से अधर सजाये....


यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव
अति पारावार प्रबल है
सर्वश्व समाहित इसमें,
आतप मार्तंड सबल है

मृदुभाषा का मुख मंडल,
है अंहकार की दारा
सिंदूर -मोह-मद-चूनर,
भुजपाश क्रोध की करा

आश्वाशन आभा मंडित,
इर्ष्या से अधर सजाये
पर द्रोही कंचन काया,
सुख शान्ति जलाती जाए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा