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लो क सं घ र्ष !: अलि को पंकिल कर देता...


बंधन का ज्ञान किसे है ,
सन्दर्भ शून्य कर देता
मादक मकरन्द लुटाता ,
अलि को पंकिल कर देता

भवसागर जीवन नैया ,
लघुता पर रोदन करती
इश्वर की माया विस्तृत,
कर्मो का शोधन करती

प्रणय ज्वाल में तिल तिलकर
जीवन का जलते जाना
प्रतिपल लघुता आभाषित ,
संयम का गलते जाना

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा