Skip to main content

धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥

बादल कड़के बिजली चमके॥
मेघा तिव तिव बोले रे॥
आधी रात के सेज के उपरा ॥
पवन आय झकझोरे रे॥
धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥
पानी बरषे बादल बरषे ॥
नदिया हिलोरे रे॥
पापी papihaa जुएनव जूनी॥
piv पिव बोले रे॥
धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥
अचरा उडे चदरा उडे॥
मौसम बोली बोले रे॥
रतिया म बदरा ॥
देहिया टटोले रे॥
धीरे धीरे कनवा म प्रेम रस घोले रे॥

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा