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गौरैया नही दिखाई है॥

छोटी चिडिया आँगन में आकर॥
चावल के किनके चुगती थी॥
चारो तरफ़ फुदक फुदक के॥
ची ची ची ची करती ही॥
उस समय आँगन में मेरे ॥
अद्भुत शोभा होती थी॥
पता नही क्या कारन है अब॥
शायद चावल में नही मिठाई है॥
कई महीने बीत गए ॥
गौरैया नही दिखाई है॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा