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बोलो आज आओ गे की कल आओ गे॥

परदे के सहारे सरमाया न करो॥
बार बार मुह बिचकाया न करो॥
बोलो आज आओ गी की कल आओ गी॥
बोलो.........................................
लड़का :)
लड़की :( बार बार देख कर मुस्काया न करो॥
पीछे मेरे आया न करो॥बोलो आज आओ गे की कल आओ गे॥

तिरक्षी तिरक्षी बात तुम बनाया न करो॥
बार बार आँखों से टकराया न करो॥
बोलो आज आओ गी की कल आओ गी॥
लड़का॥:(
लड़की॥:)
बार बार उल्लू बनाया न करो॥
प्रेम वाले मोड़ पर टकराया न करो॥
बोलो आज आओ गे की कल आओ गे॥

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा