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पागल

मै तो एक फंटूस हूँ ॥
उस जाडे की पूस हूँ॥
जिसको देख सिकुड़ जाते सब॥
उस गुर्खुल का टूट हूँ॥


कोई कार्तिक का कुत्ता कहता॥
कोई बेल का काँटा॥
मुझी देख हुडदंग है करते॥
मारे लावेदा चांटा॥
मै खेतो का धोख जो लगता॥
लोगो का जुलूश हूँ॥

कुत्ते बिल्ली भौ - भौ करते॥
लोग हमें दौडाते है॥
ईट मारते मेरे ऊपर॥
ओ हंसते हमें रुलाते है॥
अपनी माँ के ममता का ॥
फ़िर भी सही सपूत हूँ॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा