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ग़ज़ल

मेरी जानिब भी इनायत की नज़र होने लगी
जिंदगानी उनके साए में बसर होने लगी
मैंने इजहारे तमन्ना जब न की उनसे कभी
फिर न जाने कैसे दुनिया को ख़बर होने लगी
बे खुदी हद से गुज़रती जा रही है दिन ब दिन
रफ्ता रफ्ता मेरी यह हालत दीगर होने लगी
मेरी आँखों में समाता जा रहा है अक्से हुस्न
उनकी सूरत चारों जानिब जलवागर होने लगी
मेरी रुसवाई का चर्चा हर तरफ होने लगा
ख़ुद ब ख़ुद मेरी मोहब्बत मोतबर होने लगी
क्यों रहे "अलीम" को फिकरे इलाजे दर्दे दिल
दर्द की लज्ज़त से हस्ती बखबर होने लगी

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा