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हम आदर्श पुरूष के नाती है॥

हम भारत के सरल किसान है॥
हम सीधे साधे इंसान है॥
हम पढ़े लिखे भी गत के है॥
हम अत्याचारी को पटके है॥
हम मेहनत के प्रेम पुजारी है॥
हम खेती के रम्हे खिलाड़ी है॥
हम आदर्श पुरूष के नाती है॥
हम सच्चे मानव के जाती है॥
हम भेदभाव नही करते है॥
हम बेईमानी से डरते है॥
हम मेहनत की रोटी खाते है॥
हम भूखे गरीब को खिलाते है॥
हम दुश्मन के लिए ६ फिरा है॥
हम पक्के सम्भंधो के गहरा है॥
हम देश प्रेमी के बालक है॥
हम अपने देश के चालाक है॥

Comments

  1. बिल्कुल सही कहा है आपने । आप इस धरती के सच्चे इंसान है । धरती माता के संतान है । आप ही इस देश के चालक है । अच्छा लगा। आभार

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा