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बाल सखा..

बाल सखा क्यो भूल गए तुम ॥
हमें और बचपन का खेल॥
साथ हमेसा मेरे रहते थे॥
था दोनों का अनोखा मेल॥
खेल कूद करते रहते थे॥
होती रहती चुल बुल बातें॥
मिल बात कर खाते थे।
बात बिताती थी राते॥
किस्मत ने ऐसा करवट बदला॥
जो चले गए तुम कुछ दूर॥
तुमसे मिलाने तेरे घर पहुचा॥
बोले तुम्हे भूल गए हुजुर॥
बीते बातें ताजा करने को॥
मैंने छेदी पुराणी यादे॥
अधिक समय अभी नही है॥
फ़िर करना कभी मुलाकाते॥
आशा की ठठरी खुल गई॥
मई ममता दियुआ वही उडेर॥
बाल सखा क्यो भूल गए तुम ॥
हमें और बचपन का खेल॥

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