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जीवन से खिलवाड़ करके॥

आज मेरा दिल फ़िर रोया है॥
बीते बातें याद करके॥
वह ठुनक के मुझसे चली गई है॥
मीठा मीठा प्यार करके ॥
उसके इशारे पे चढाते थे॥
गगन की ऊंची चोटी पर॥
मगन जिया उसका रहता था॥
मै मुग्ध था उसकी ठिठोली पर॥
शायद रिश्ता तोड़ गई वह ॥
जीवन से खिलवाड़ करके॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा