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दावत देने घर आती हो॥

दावत देने घर आती हो॥
फ़िर खाली थाल दिखाती हो॥
प्रेम की तिरछी नैन चला कर॥
बाद में हमें रूलाती हो॥


हम उलझ जाते है बात में रेरे॥
जब प्रेम का शव्द बताती हो॥
हम दिल को अपने दे देते है॥
क्यो पीछे मुह बिचकाती हो॥


बात बनाने में माहिर हो॥
छत पे हमें बुलाती हो॥

प्रश्न जब कोई पूछ मै लेता ॥
उत्तर देने में झल्लाती हो॥


वादा करना काम तुम्हारा॥
हां मुझसे भरवाती हो॥
कसमे कंदिर में खा करके ॥
अब मुझको क्यो ठुकराती हो॥

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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