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बजट पर कुछ पंक्तियाँ.

गाँवों में अब हो रहा पूँजी का हुड दंग
सारे हिल-मिल लूटते करदाता है तंग..
करदाता है तंग करें अब क्या और कैसे
मन को मोहे आज प्रणब की खूब लपूसें..
काले गोरे कोट पर हो गयी कर की मार
सस्ती होती आज फिर मंहगी मंहगी कार
मिला बहुत सा प्यार मिलेगा अब रोजगार
मिलकर खाएं आज खोदते सड़कें यार......

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा