गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
जो कहते है उन्हें कहने दो तुम इस्लाम की अच्छे और बुराइयों को लिखते रहो यही सब लोग एक दिन तुम्हे स्वीकार कर लेंगे...
ReplyDeleteहिन्दुस्तान का दर्द के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले है !
जो कहते है उन्हें कहने दो तुम इस्लाम की अच्छे और बुराइयों को लिखते रहो यही सब लोग एक दिन तुम्हे स्वीकार कर लेंगे...
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असल बात ये है संजय जी ये इसलाम की अछे बुरे कम लिखते है......बल्कि हिन्दू धर्म की बुराइयाँ ज्यादा लिखते है... इनकी जिस पोस्ट के लिए इन्हें मोहल्ले से निकला मिला है, वो मैंने दो चार दिन पहले ही पड़ी थी.... इन्हें उस पोस्ट पर वाजिब कमेन्ट मिले और मोहल्ले का अपने स्तर पर सही फैसला है... लिखो खूब लिखो पर ठीक मानसिकता के साथ, असली बात को लिखो, समाज में जो चल रहा है उस पर लिखो... इसलाम में तो बहुत अच्छी बातें लिखी है पर कितने मानते है और कितने लोग उसका गलत उपयोग कर रहे है... सबको दिख रहा है.. उस पर लिखो उसकी बुरे दूर करो.... दूसरों में मीन मेख निकलने से पहले अपने दोष दूर करो....
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