Skip to main content

लो क सं घ र्ष !: मेरा यह सागर मंथन...

सुधियों की अमराई में ,
है शांत तृषित अभिलाषा।
कतिपय अतृप्त इच्छाएं
व्याकुल पाने को भाषा॥

मेरा यह सागर मंथन,
अमृत का शोध नही है।
सर्वश्व समर्पण है ये
आहों का बोध नही है॥

सुस्मृति आसव से चालक
पड़ता ,जीवन का प्याला।
कालिमा समेट ले मन में,
ज्यों तय आसवृ उजाला

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा