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लो क सं घ र्ष !: सुंदर सी, सुन्दरता


है राग भरा उपवन में,
मधुपों की तान निराली।
सर्वश्व समर्पण देखूं
फूलो का चुम्बन डाली॥

स्निग्ध हंसी पर जगती की,
पड़ती कुदृष्टि है ऐसी।
आवृत पूनम शशि करती,
राहू की आँखें जैसी॥

उपमानों की सुषमा सी,
सौन्दर्य मूर्त काया सी।
प्रतिमा है अब मन में
सुंदर सी,सुन्दरता सी॥

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

Comments

  1. १४ मात्राओं का छद है--दूसरे मेण प्रथम पन्क्ति यों में १५-१५ मात्रायें है, लय टूट्ती है। भाव समुचित ,स्पष्ट नहीं, किसकी हंसीं पर जगती की कुद्रष्टि है।, किस की प्रतिमा ?

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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