Skip to main content

लोकसंघर्ष !: तुम्हारे बिना जिंदगी....


तुम्हारे बिना जिंदगी यू कटी-
कि जैसे दिया ज्योति के बिन जले।
स्वप्न साकार दर्शन से होने लगे-
निमंत्रण मौन अधर देने लगे,
मन के दर्पण में मूरत बसी इस तरह,
कोरे सपनो में भी रंग भरने लगे,
छोड़ मझधार में ख़ुद किनारे लगे
बोझ सांसो तले रात दिन यूँ चले
जैसे मंजिल बिना कोई राही चले- ।


साँस की राह पर प्यार चलता रहा,
रूप की चांदिनी में वो बढ़ता रहा।
नैन की नैन से बात होती रही ,
प्रेम व्यापार में मन ये बिकता रहा।
आंसुओं
के तले पीर दुल्हन बनी
वो सुहगिनि मिली यू मिलन के बिन-
जैसे मोती के बिना सीप कोई मिले

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा