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पेड़ की पुकार,

रो रो कर पुकार रहा हूँ ।
हमें जमी से मत उखाडो ॥
रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥
हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥
आसमा के बादल से पूछो
कैसे मुझको पाला है,
हर मौसम ने सींचा मुझको
मिटटी करकट झाडा है,
उस मंद हवाओं से पूछो
जो झूला हमें झुलाया है,
कोमल हाथो से पाने
थपकी दे के सुलाया है,
अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर
पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥
इस धरा की सुंदर छाया
हम पदों से बनी हुयी है,,
प्यारी मंद हवाए
अमृत बन कर चली हुयी है॥
हामी से नाता है जन जन का
जो इस धरा पर आयेगे॥
हामी से रिश्ता है पग पग पर
जो यहाँ से जायेगे॥
शाखाए आंधी तूफानों के टूटी
ठूठ आग में मत डालो
रो रो कर पुकार रहा हूँ...............
हामी कराते सब प्राणी को
अम्बर रस का पान॥
हामी से बनती कितनी औषधि
नई पिन्हाती जान॥
कितने फल फूल है देते
फ़िर भी तुम अनजान बने हो,,
लिए कुल्हाडी टाक रहे हो
उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥
हामी से सुंदर मौसम बँटा
बुरी नज़र हमपे मत डालो॥
रो रो कर पुकार रहा हूँ................

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ग़ज़ल

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