गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
विधु -रूप-सुधा भरने को
ReplyDeleteदौड़े धन शावक जैसे!
क्या आप निश्चित हैं कि 'धन' शब्द ही है, 'घन' नहीं !
sriman ji,
ReplyDeleteaap ki baat sahi hai typing ki galti se ghan ki jagah dhan type ho gaya hai .kripya chama karein .
sadar,
suman
loksangharsha