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एक मुक्तक : आचार्य संजीव 'सलिल'

देश इष्ट ईमान धर्म रब गॉड खुदा ईश्वर है अपना।

पथ पग पथिक लक्ष्य साधन यह साध्य साधना सच औ' सपना।।

श्वास-आस परिहास हर्ष दुःख मिलन-विरह वात्सल्य भक्ति भी-

देश-प्रेम को नाप सके जो बना न 'सलिल' जगत में नपना ।।

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा