Skip to main content

लो क सं घ र्ष !: वैसे ही मेरा ख्वाब है तावीर के बगैर....


तदवीर जैसे होती है तकदीर के बगैर।
वैसे ही मेरा ख्वाब है तावीर के बगैर

उसने जो सारे वज्म किया मुझको मुखातिब
मशहूर हो गया किसी तशहीर के बगैर ।

सुनकर सदाये साकिये मयखाना शेख जी
मेय्वर से उठ के चल दिए तक़रीर के बगैर

महफिल से आके उसने जो घूंघट उठा दिया
सब कैद हो गए किसी जंजीर के बगैर ।

दस्ते तलब भी उठने लगे अब बराये रस्म
वरना वो क्या दुआ जो हो तासीर के बगैर ।

दीवाने की नजर है जो खाली फ्रेम पर,
वहरना रहा है दिल तेरी तस्वीर के बगैर।

जरदार को तलब है बने कसेर आरजू
'राही' को है सुकूं किसी जागीर के बगैर ।

-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा