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Loksangharsha: जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं...


कभी कामना कामना को लजाये॥
चलो तृप्ति के द्वार डोली सजाएं॥

मुझे आइना जो दिखाने लगे वो-
कई सूरतो में दिखी लालसायें॥

तटों को बहाने चली धार मानी
मिटी रेत के गांव की भावनाएँ॥

उडे आंधियो के सहारे -सहारे -
मिटाती रही जिंदगी वासनाएं॥

उसी राह को खोज ले पस्त ''राही''
जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

Comments

  1. वाह!!मजा आ गया...
    सुमन जी बहुत खूब ....

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  2. वाह!!मजा आ गया...
    सुमन जी बहुत खूब ....

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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