गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
बहुत खूब। प्रेम का बखूबी वर्णन किया है आपने।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वाह क्या बात है ''खुदा भी मुस्कुरा देता था जब हम प्यार करते थे
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है
वाह क्या बात है ''खुदा भी मुस्कुरा देता था जब हम प्यार करते थे
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है