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Loksangharsha: नतुन स्वप्न


एखनो विनिद्र रजनी जागिया
सजनी जाले आधारे आलो

एखनो देखिनी प्रभात सुदिन
तबुओ स्वप्न साजाइ भालो

आशार तरीटी भाषाये सागरे
कूल भेंगे कुल गड़ी

स्तिमित आलोर प्रदीप जालाये
दियेछि
जीवन सिन्धु पाड़ी


-उत्तम शर्मा
संयोजक- भारतीय इन्साफ मोर्चा
मूल
कविता बंगला भाषा में

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा