Skip to main content

यहि देश कै भैया का होई ॥ आओ हम....

काल्हे उदघाटन भवा रहै , बहि गवा आज पुल पानी मा ।
केतनेव जन सरग सिधार गए,बचपन औ भरी जवानी मा ॥
यहि देश कै भैया का होईआओ हम....
छन्नूमल गरम मसाला मा, घोडी कै लीद मिलाय रहे ।
इस्पिट्टर कै मुट्ठी गरम करैं ,औ मन ही मन मुस्काय रहे॥
यहि देश कै भैया का होईआओ हम....
नौकरी के खातिर बेटवो अब , बप्पा कै गटई काटि लेई।
गहना पैसा हथियाय बहू,सासू कै टेटुवा दाबि देई ।
यहि देश कै भैया का होईआओ हम....
लखनऊ मा पढ़ती मिसरा जी की , नातिन बिरिज किसोरी है।
अम्मा पूछैं बिटयौनी से, ई छोरा है कि छोरी है॥
यहि देश कै भैया का होईआओ हम....

मोहम्मद जमील शास्त्री

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा