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वक्त हालात और मैं

वक्त कुछ इस तरह मेहरबान गया
आंधियां आती गई मैं आशियाँ होता गया
सीखा न था जब चेह्चाहाता था बहुत
ढल गया अल्फाज़ में तो बेजुबान होता गया
ढूंढ लेता था अंधेरों में भी अपने आपको
पर उजालो से मिला तो बदगुमान होता गया
जब किया था कैद उसे था बहुत बाकी मगर
रफ्ता रफ्ता वोह परिंदा हम जुबां होता गया
आँधियों के साथ ऊंचा कुछ दिनों वो क्या उड़ा
गर्द का राह था लेकिन आसमान तो होता गया

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा