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कुछ अपने लिए ,कुछ दूसरो के लिए...

हो रोशन चिराग ,जिन्दा दिली भरा,।
तो जरूरी नही सूरज ही हो
रौशनी के लिए
ख्वाब हो,ख़याल हो दुरुस्त ,जज्बात हो
इरादे हो पुख्ता
कर्म की तलवार से ,काट दो अभाग्य को
आधा पानी में रहो
रहो आधा रेत पर
थोड़ा बुद्ध हो जाओ
थोड़ा चावार्क बन
जिंदगी को जियो ,जीने के लिए
कुछ अपने लिए ,कुछ दूसरो के लिए

दिनेश अवस्थी
इलाहाबाद बैंक
उन्नाव

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा