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ग़ज़ल

आज सितारे आँगन में है उनको रुखसत मत करना
शाम से मैं भी उलझन में हू तुम नही गफलत मत करना
हर आँगन में दिए जलाना, हर आँगन में फूल खिलाना
उस बस्ती में सब कुछ करना हम से मोहब्बत मत करना
अजनबी मुल्कों अजनबी लोगों में आकर मालूम हुआ
देखना सारे ज़ुल्म वतन में लेकिन हिजरत मत करना
उसकी याद में दिन भर रहना आंसू रो के चुप साधे
फिर भी सबसे बातें करना उसकी शिकायत मत करना

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा