
नीड़ निर्माङ में होम तन हो गया ।
कर्म की साध पर रोम बन हो गया।
एक आंधी बसेरा उडा ले चली -
रक्त आंसू बने मोम तन हो गया॥
पाप का हो शमन चाहते ही नही।
कंस का हो दमन चाहते ही नही।
कुछ सभाओ में दुस्शासनो ने की ठसक-
द्रोपती का तन वसन चाहते ही नही॥
सर्जनाये सुधर नही होती।
वंदनाएं अमर नही होती।
आप आते न मेरे सपनो में-
कल्पनाएँ मधुर नही होती॥
नम के तारो से बिखरी हुई जिंदगी।
फूल कलियों सी महकी हुई जिंदगी
भर नजर देखकर मुङके वो चल दिए-
जाम खाली खनकती हुई जिंदगी॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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--- संजय सेन सागर