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Loksangharsha: होम तन हो गया ..



नीड़ निर्माङ में होम तन हो गया
कर्म की साध पर रोम बन हो गया
एक आंधी बसेरा उडा ले चली -
रक्त
आंसू बने मोम तन हो गया

पाप का हो शमन चाहते ही नही
कंस
का हो दमन चाहते ही नही
कुछ
सभाओ में दुस्शासनो ने की ठसक-
द्रोपती का तन वसन चाहते ही नही

सर्जनाये सुधर नही होती
वंदनाएं
अमर नही होती
आप आते मेरे सपनो में-
कल्पनाएँ मधुर नही होती

नम के तारो से बिखरी हुई जिंदगी
फूल कलियों सी महकी हुई जिंदगी
भर नजर देखकर मुङके वो चल दिए-
जाम खाली खनकती हुई जिंदगी

डॉक्टर
यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा