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Loksangharsha: मुक्तक




आदमी तोलों में बंटता जा रहा है ।
सांस का व्यापार घटता जा रहा है ।
जिंदगी हर मोड़ पर
सस्ती बिकी-
पर कफ़न का भावः बढ़ता जा रहा है

कल्पना मात्र से काम बनते नहीं
साधना भावः से साधू बनते नहीं
त्याग ,त़प , धैर्य मनुजत्व भी चाहिए -
मात्र
वनवास से राम बनते नहीं

मानव
मन सौ दुखो का डेरा है
दूर तक दर्द का बसेरा है
रौशनी खोजने से क्या होगा
जबकी हर मन में ही अँधेरा है

राखियो के तार तोडे, मांग सूनी कर गए
देश की असमत बचाते,कोख सूनी कर गए
बलिदानियों के रक्त को सौ-सौ नमन
वे हमारे राष्ट्रध्वज की शान दूनी कर गए

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

  1. सुमन जी,
    रही जी के मुक्तक यथार्थ परक हैं
    - विजय

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  2. bahut khoob likha hai aapne..............yatharth ko prastut kar diya.

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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