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Loksangharsha: ग़ज़ल

Loksangharsha: ग़ज़ल

ग़ज़ल



बाजार के लिए न खरीदार के लिए ।
मेरा वजूद सिर्फ़ है ईसार के लिए ।
अब कुछ तो काम आए तेरे प्यार के लिए ।
वरना ये जिंदगानी है बेकार के लिए।
माथे पे जो शिकन है मेरे दिल की बात पर
काफी है ये इशारा समझदार के लिए ।
मिलने का उनका वादा जो अगले जनम का है
ये भी बहुत है हसरते दीदार के लिए ।
रातों के हक में आए उजालो के फैसले
सूरज तड़पता रह गया मिनसार के लिए ।
इल्मो अदब तो देन है भगवान की मगर
लाजिम है हुस्ने फिक्र भी फनकार के लिए।
दस्ते तलब बढ़ाना तो कैसा हुजूरे दोस्त
लव ही न हिल सके मेरे इजहार के लिए
कुछ बात हो तो उसका तदासक करें कोई
जिद पर अडे हुए है वो बेकार के लिए।
दुनिया के साथ साथ मिले स्वर्ग में सुकूँ
क्या क्या नही है हक के तलबगार के लिए।
राही जो ख़ुद पे नाज करे भी तो क्या करे
'राही' तो मुश्ते ख़ाक है संसार के लिए ।

------------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा