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Loksangharsha: ग़ज़ल

ग़ज़ल

अम्बरीश 'अम्बर '
बाराबंकी

जवां है प्यार व श्रृंगार व मनुहार होली में ।
हमें करना है सागर पार अबकी बार होली में ॥
स्वयं को कुछ नही बच्चों को बस सामान्य सा तोहफा ,
दिया साड़ी है साली को बड़ी रंगदार होली में ।
मोहब्बत की दिशा में , बड़ी दुशवारियाँ लेकिन ,
है पाती इश्क की नौका सही पतवार होली में।
उडे गुझियाँ से सोंधी तथा जब खीर से खुशबू,
छुहारा भी लगे दिखने हमें रसदार होली में।
नशा चढ़ता है जब भी शीश पर होली मनाने का ,
तभी लगती है हर फटकार हमको प्यार होली में ।
बहुत आनंद आता है तभी इस रंग क्रीडा में ,
साथ में जब नए हम उम्र हो दो चार होली में।
चलो मिलकर सजाएं इस तरह गंगो जमन संस्कृति ,
बने दिन से जगह पर एक था ठहरा रहा 'अम्बर' ,
ढूँढने चल पड़ा मैं भी अब अपना प्यार होली में॥

मो.नो-09450277970

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा