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ग़ज़ल

अपनी तारिख के औराक उलट कर देखो
आगे बढ़ना है तो पीछे न पलट कर देखो
खूबसूरत सी नज़र आती है दुनिया यु तो
देखना है तो निकाब उसका उलट कर देखो
अपने इस्लाफ के अक्वाल को भूलो न कभी
भूल जाने का अगर खौफ हो, रट कर देखो
तजरबा यु भी किसी रोज़ करो जीने का
तितलियों औ ज़रा गुल से लिपट कर देखो
ऐब पर गैर के पड़ती है तुम्हरी नज़रें
अपनी जानिब भी किसी रोज़ पलट कर देखो

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा