गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
अमाँ मियाँ, मज़ा आ गया पढ़ कर, लो कर लो बात | मैं भी ज़रूर वोट डालने ज़रूर जाऊंगा|
ReplyDeleteजब मैंने पहली बार पढ़ा था तो मुझे भी ऐसा ही लगा था सलीम जी !!
ReplyDeleteआनंद आ गया बहुत खूब
ReplyDeleteबधाई
bahut achcha maza agaya ...behtareen bahut umda
ReplyDeleteसंजय जी,
ReplyDeleteहमारे प्रयास को अपने पाठकों तक पहुँचाने के लिए शुक्रिया। मैंने तो आपको ३ पोस्टर ही भेजा था, बहुत से पोस्टर (अलग-अलग साइज़ के), हैडर बनकाकर सभी को लगाने के लिए दिया है। यहाँ देखिए और उसके बारे में भी लोगों को बताइए