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ग़ज़ल

जुस्तुजू खोये हुए की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब् सफर करते रहे
रास्तों का इल्म था हमको न सम्तो की ख़बर
शहरे न मालूम की चाहत मगर करते रहे
हमने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को
तेरे जाने की ख़बर दीवारों दर करते रहे
वोह न आएगा हमे मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोचकर करते रहे
आज आया है हमे भी उन उदानो का ख्याल
जिनके तेरे जोमे में बे बालो पर करते रहे \

Comments

  1. आपने अपनी कविता में शब्दों को सुन्दर ढंग से पिरोया है।
    इससे भावों में जीवन्तता आ गयी है।
    अभिव्यक्ति सुन्दर और ग्राह्य है।

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  2. बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश किया है आपने!

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा