Skip to main content

सचमुच में बड़ी


मेरी udghoshna सुनकर कि
अब बड़ी हो गई हूँ मैं
तुम्हारा यह कहना कि
तुम तो
थीं हमेशा से बड़ी
तुम्हारे विचार ............
तुम्हारी सोंच ने
छोटा कभी
रहने ही नहीं दिया तुम्हें
यदि सही है
तो बताओ मुझे
बच्चों की तरह
अक्सर ही
दिल मेरा
क्यों कहता है कि
जी भर रोऊँ मैं
और गले लगाकर
चुप कराये कोई
किसी भी नन्हें मासूम की तरह
क्यों जब- तब
जिद कर बैठता है
दिल मेरा
ऐसे लोगो की
जो नहीं हो सकते मेरे
क्यों देखती हूँ ख्वाब
बच्चों की मानिंद
बंजर दिलों में
निश्चल भावों के
दरख्त उगाने के
यह देखकर भी कि
हकीकी ख्याल मेरे
तब्दील होते जा रहे हैं
दिन बा दिन khawabon में
सच- सच बताओ मुझे
इसलिए कह रही थी
तुम यह n
ताकि chodkar bachpana
बन जाऊँ मैं सचमुच में बड़ी ।
arti "astha"

Comments

  1. बहुत खूब
    आपके पास शब्दों का अच्छा काफिला है

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा