Skip to main content

अब मेरी निंद्रा टूट गई हम डरे गे न शैतानो से।

अब मेरी निंद्रा टूट गई हम डरे गे न शैतानो से।
ये आग उगलती है बाहे हम लादे गे अब तूफानों से॥
वे दिन को क्या भूल गए जब हमने तुमको वतन दिया।
कितने लोगो को तुम मारे फ़िर भी हमने चमन दिया॥
जब देखो तब बकते रहते हम किसी से कम नही।
हमने तुमको अजमाया है तुझमे कोई दम नही॥
अपने घर में छुप कर बैठे चूहे जैसे मानदो से।
ये आग उगलती है बाहे हम लादे गे अब तूफानों से॥
वहा से जितने घर आते है तेरे आतंकवादी।
यही पे ढेर हो जाते है होती उनकी बर्बादी॥
किसमे कितना दम है ख़ुद पता चल जायेगा।
अगर ख़त्म किया न पंगा वह दिन जल्दी आयेगा॥
तब देखेगे पानी कितना है फूली औकातो में।
ये आग उगलती है बाहे हम लादे गे अब तूफानों से॥
जितने साथी है तेरे उनको साथ बुला लाना।
मरते जायेगे सीमा पे उनकी लाशें ले जाना॥
तुम्हे पता ये देश हमारा है ममता का सागर।
प्रेम से रहना सीख लो प्यारे भर जायेगी गागर॥
हमने हरदम लड़ना सीखा उन बहते उफानों से॥
ये आग उगलती है बाहे हम लादे गे अब तूफानों से॥

Comments

  1. वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !

    ReplyDelete
  2. बबली जी ओउर सेन साहब आप सब का सुक्रिया जो आप हमारा मनोबल बाधा रहे है, ९९९९५७८८०२

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा