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लोहिया की " डिजिटल वाईफ"

मैं अपनी शादी को लेकर गहरी चिंता में हूँ। कुछ दोस्तों की सलाह पर वेबसाइट्स और अख़बारों में विज्ञापन दे ड़ाला है। बढ़िया रेस्पोंस भी मिल रहा है । लेकिन सवाल है की सभी सैलरी वाले मुद्दे पर बड़ा गंभीर रहतें हैं । बार -बार जो सवाल पूछा जा रहा , उसका जवाब देते- देते ख़ुद पर ग्लानी होती है। "आपने ५-डिजिट सैलरी का ज़िक्र किया है , पर इधर उधर से मिला कर कुल कितना कमा लेते हैं ? " बेटे आजकल प्रिंट पत्रकारिता में रखा क्या है , टी।वी पे कब तक आ जाओगे ?"... .... अब मुझे मेरे होने वाले पत्नी की तस्वीर ,बरबस अंखियन विच उभर आती है ... मैंने बहुत सोचने पर उस डिजिटली इंस्पायर्ड वाईफ का नाम रखा है " डिजिटल वाईफ" .........
नाम पसंद आया होगा .....
अब सवाल उठता है कि मेरी बीबी का लोहिया से क्या लेना- देना, अरे लोहिया तो क्या किसी से क्या लेना देना ? लेना हो तो चलेगा , पर देना क्या ....? खैर... बात वहीं पर.........
लोहिया का तात्पर्य ... राममनोहर लोहिया से होना, क्या लोहिया शब्द कि परिणति है ? अगर समाजवाद को चौके में ले जायें तो॥ लोहिया का अर्थ होता है कडाही ... जिसको जी आज के ज़माने में हॉकिंस और अन्य किचन प्रधान उत्पादकों ने , नई तकनीकी और क्रन्तिकारी उत्पादों से पदच्युत कर दिया है। मैं स्वयं को कडाही-तुल्य समझता हूँ ॥ जिसके सामने बाज़ार ने कुछ ऐसे मूल्यों के दीवार खड़ी कर दी है कि पत्नी कि अर्धांगनी होने कि लालसा समाप्त हो गई है ॥ तो उसे "डिजिटल पत्नी "क्यूँ न कहूं ? अब तो बाजार ने मानक पति होने का पैमाना कुछ इस तरह बनाया है कि अच्छा पति होने के लिए non-stick cookware लाना ही पड़ेगा ....हर रोज़ टी।वी पर यही विज्ञापन आता है......
आज समाज विवेक बराबरी के न्यायबोध से भींगा तो हुआ है पर यह बात इस सन्दर्भ में लागू नही होती ॥ मेरी हिम्मत नही हुई कि पूछूं , कि " भावी ससुर जी, क्या ...आप मेरी insurance policy कि जानकारी भी चाहेंगे ...... ताकि मेरे मरणोपरांत उनके सुख-सुविधा में कामी न रह जाए...

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा