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पगलवा कई prem

ई मर्द के महत्वाकांक्षा तू
भाप न पौलू साए म
वादा के के चंपत भैलू
दाग लागौलू माथे माँ
तू दुसरे के बाह पाकर लहालू
हम रास्ता तोहरी ताकत बातें
ई कौन शास्त्र माँ लिखा बा प्रिये
वादा कई के छोर दिया
मन्दिर माँ इतनी कसम खेलु
धागा बंधिव हाथे माँ
माला तोहरे नाम के हम
जपत रहे दिन रात
या तो तू अब आय जेबू,,
या हम देबय आपण जान//

Comments

  1. अच्छा लिखा है बहुत बढ़िया !

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा