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मुक्तक (Muktak):
लाभ प्रद दोहे

मुक्तक (Muktak): <blockquote><em><strong>लाभ प्रद दोहे </strong></em></blockquote>:
"कण कण ले चींटी चढ़े गिरती सौ सौ बार ।
रह रह कदम संभालती, हो जाती है पार ॥"

बधाई. आपका यह दोहा बिलकुल शुद्ध है. शेष में कुछ परिवर्तन करने से वे शुद्ध हो सकते हैं. मैंने कुलवंत जी की कविता 'कोयल' पर टिप्पणी में आपकी लिखी कुण्डली देखी. कुण्डली की पहली दो पंक्ति दोहा तथा बाद में रोला होता है. दोहा की कक्षा में आगे कुण्डली, जनक छंद, सोरठा आदि पर भी बातें होंगी. आप में प्रतिभा है. थोडा सा तराशने से अभिव्यक्ति खूबसूरत हो जायेगी. कृपया अन्यथा न लें...यह सिर्फ स्नेह के नाते लिख दिया. आपका - सलिल

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा